आकाश निरिक्षण
शहरों में रहनेवाले कुछ लोग मीडिया की वजह से थोडी़ बहुत जानकारी रखने लगे है। किंतु इन लोगो में भी कई प्रकार की हाय – टेक् अंधश्रध्दाएँ दिखाई पड़ती है। देहातों में अब भी अंधश्रध्दा की वजह से बहुत से पैसे बेकार में ही खर्च होते है। देहाती लोगों को और खास करके बच्चों को विज्ञान ते मूल तत्वोंकी जानकारी देनीही चाहीए। ऐसा करने से ये लोग फालतू खर्चा नही करगें। अनसुचित जातियाँ और रितीया इनसे बने हुए इन देहातों के समाज में विज्ञान और तंत्रज्ञान के संदर्भ में ज्ञान बढे इसके लिए बहुत – से प्रयत्न होने चाहिए।
देहातों को केंद्र
देहातों में भरसक कोशिशें की जीनी चाहिए इस बात को ध्यान में रखकर, वहाँ के लोंगो की भावनाओं को ठेस न पहुँचाते हुए व्याख्यान, प्रयोग आदि शांतता भरे रास्तों से लोगों के मन में जड जमायी हुई अंधश्रध्दाओं का निर्मुलन करने में अंनिस ने अपना ध्यान जुटाया है। ग्रामीण इलाकों में कुछ सजग नागरिक अंनिस की इस कोशिश का स्वागत करते हैं। अपनी दीन परिस्थिति और परंपरागत जीवनशैली के बावजूद भी अंनिस के कार्यक्रमों को ये लोग प्रोत्साहन देते हैं। कुछ छोटे बडे शहरों को छोड दे चो अब भी वैज्ञानिक मनोवृत्ति के मामले में अब भी महाराष्ट्र पिछडा हुआ ही है। आदिवासी इलाकों में आज भी नरबलि पर लोंगो का विश्वास है। देहातों पर कोई भी मुसीबत आयी तो देहात की ही किसी नारी को डायन बनाया जाता है। ये सभी बातें हम टाल सकते हैं। इसके लिए बहुत खर्चा भी नहीं करना पडता। स्वयंसेवी संस्थाओं को निरंतर इसके लिए कोशिश जारी रखने की आवश्यकता है।
राशिचक्र फलज्योतिष, ग्रहोंकी गति पर निर्भर शुभ समय, दैव आदी अंधश्रध्दाओं को हटाने के लिए सर्वाधिक परिणाम करनेवाला कार्यक्रम याने आकाशदर्शन। पंरतु यह केवल एकाध टेलिस्कोप की मदद से नहीं किया जा सकता। विज्ञानबोध वाहिनी का कार्यक्रम करते समय यह बात ध्यान में आई। वैज्ञानिक मनोवृत्ती की नीव है – विश्व का निर्माण और स्वरूप, विश्वशास्त्र, खगोलशास्त्र, आदी ज्ञान। इसका जरूरी ज्ञान देने के लिए अंनिल को तारंगण जैसे साधन की आवश्यकता महसूस हुई। अंनिस ने फिर आयुका से संपर्क बनाया और उनके पास जो तारांगण है वह कुछ समय के लिए लेकर उसका कितना फायदा हो सकता है इसका अंदाजा औरगांबाद के एक कार्यक्रम में लिया। यह कार्यक्रम बहुत ही प्रभावी और लोकप्रिय साबित हुआ।
इस अनुभव सें अंनिस ने एक वाहन में घुमनेवाला नभांगन लेकर ८ वी और ९ वी के हररोज २०० छात्रों के लिए जगह पर आकाशदर्शन के कार्यक्रम करने की दो साल की योजना बनायी। कोलकत्ता के नॅशनल कौन्सिल ऑफ सायन्स मुझियम संस्था ने ऐसा तारांगन बनाया है। उनके पास इस प्रस्ताव को भेजा गया है। यह तांरागण प्राप्त होने में अभी काफी समय लगेगा। इसी बीच अंनिस ने आयुका से तारांगण लेकर अपने ग्रामिण और शहरी इलाकों में आकाशदर्शन के कार्यक्रम जारी रखें हैं।
आकाशदर्शन योजना की कार्यवाही
इस योजना के अंतर्गत किसी ग्रामीण इलाके का प्रमुख केंद्र याने किसी स्कूल में फुगाने लायक (इन्फ्लेटेबल) तारांगन रखना। यह स्कूल अपने आसपास की स्कूलों सें सपंर्क प्रस्थापित करके वहाँ के छांत्रो को प्रदर्शन देखने बुलायेंगी। एक समय में हर क्लास के २० विद्यार्थियों के लिए ३० मिनटों का प्रयोग दिखाया जाएगा। स्कूल के समय पर सब हाजिर रहें इसके लिए संबधित शिक्षा अधिकारियों की इजाजत ली जाएगी। इस तरह हररोज पांच घंटों में २०० छांत्रो को तारांगन देखने का मौका मिलेगा। प्रयोग से पहले और बाद में विद्यार्थियों को पोस्टर्स का प्रदर्शन, प्रश्नमंजूषा और वकृत्व स्पर्धा जैसे कार्यक्रमों में वा हिस्सा ले सकेंगे। इसके जरिए विश्व के बारे में उन्हे बहुत-सी जानकारी मिलेगी। प्रशिक्षित निवेदक तारांगन की भीतरी रचना के बारे में जानकारी देंगे। ग्रह-नक्षत्रों की स्थिती, खगोलशास्त्र, विश्वशास्त्र और उनका आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी से कोई ताल्लुक होता है क्या इसका स्पष्टीकरण प्रयोगों के द्वारा दिया जाएगा।
विज्ञानबोध वाहिनी
अंनिस को पूरा विश्वास है कि अज्ञान के कारण ही लोग विवेकहीन बर्ताव करते है और अंधश्रध्दाओं में जकडे रहते हैं। उचित शिक्षा से वंचित होते है। स्कूलों और कालेजों में वैज्ञानिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे सुबुध्द होंगे और उनके भीतर वैज्ञानिक मनोवृत्ति उपजेगी। बाद में वे वैज्ञानिक, विवेकी और तर्कशुध्द दृष्टीकोण से अपनी आयु की ओर, अपने जीवन की ओर देखेंगे ऐसी आशा अंनिस को थी। परंतु देश की शिक्षा व्यवस्था को तय करनेवालों ने शिक्षा-संस्थाओं के कार्य में बाधा पैदा की। कुछ शिक्षाविदों ने अपनी जनता पुराने घिसेपीटें विचारों में ही जकडी रहेंगी सी व्यवस्था बनायी। हमारे देश में बहुत उंचे दर्जे के समझे जानेवाले पंडित केवलमात्र यहाँ के लोग नाटे रह गए हैं इसलिए ऊँचे दिखाई पड़ते है।
जातिव्यवस्था के अंतर्गत बहुजनों का शिक्षा अधिकार नकारा गया इसलिए वे अशिक्षित रहें। पढना, लिखना, सिखना याने पाप है ऐसी बात उनकी दिमाग़ पर थोपी गई। इस तरह बहुजनों को सैकडो साल शिक्षा से दूर रखनेवाले स्वार्थी उच्च वर्णीय लोगों की वजह से बहुत से भारतीय दरिद्री अवस्था तक पहुँचे है। लगभग ४०० साल पहले युरोप में जो पुनरज्जीवन आंदोलन छिड़ा जिसके कारण लोगों की विचार करने की पध्दति ही बदल गई। विज्ञान और तंत्रज्ञान के क्षेत्र में नये नये अनुसंधान हुए। पूरा संसार बदल गया। आधुनिक जीवनशैली का स्वागत हुआ। मगर इस उथलपुथल में हम कहीं भी नही थे। बहुजनें को अज्ञानी रखनेवाले समाज की परिस्थिती ऐसी ही रही तो शीघ्र ही हम लोग संसार का सबसे पिछडा देश बन जायेंगें। कुछ मुठ्ठीभर अमीर लोगों ने धर्म, शिक्षा, जमीनका अधिकार, व्यापार ही नहीं तो शालनाधिकार भी अपनीही मुठ्ठी में रखा और खुद गब्बर बन गए तो देश समृध्द_ylang108yy नही बन सकता।
‘गरीबी हटाओ’ कहकर गरीब लोंगों को नष्ट नहीं किया जाता। देश के हीन अवस्था दूर करने के लिए और देश को समृध्द बनाने के लिए बहुजनों का सुशिक्षित और विवेकी होना आवश्यक है। संविधान के आदेशानुसार बहुजनों में यह वैज्ञानिक मनोवृत्ति, जिज्ञासा और मानववाद पनपाना चाहिए यह हर भारतीय नागरिक का फर्ज है।
यह फर्ज अंनिस इमानदारी के साथ निभाता है l मगर यह कार्य बहुव्यापी और परिणामकारक होने के लिए सुशिक्षित-अशिक्षित सभी प्रकार के समाज घटकों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति और दृष्टीकोन को बढ़ाने के लिए अंनिस को अच्छे उपकरण और प्रभावी साधन की नितांत अवश्यकता है l उस मामले में देश के बहुतेरे लोगों को अज्ञान दूर करने के लिए जगह पर हमेशा के लिए शिक्षा केंद्र स्थापित करने के बजाय दुरदराज के देहातों में भी पहुंच पाये ऐसा एक घूमनेवाला युनिट तैयार करना चाहिए ऐसा नतीजा बहुत सोचने के बाद अंनिस ने निकाला l युनिट कि जहाँपर गरिब और अशिक्षित लोग रहते है l जहाँ शिक्षा की कोई सुविधा नहीं होती ऐसी जगह वह पहुँच सके l इसीमें से विज्ञानबोध वाहिनी की क्लपना साकार हुई l यह खास वाहिनी बनाने के लिए अमेरिका और जपान देशों के रोटरी क्लबों नो मदद की l यह वाहिनी याने एक पहियेवाला ‘विज्ञान का वर्ग’ है l शहरो में स्थित झोपडीयों का इलाका और दुरदराज के देहातों में स्थित बाल तरूण और वृध्दों तक यह विज्ञान वर्ग पहुँचता हैl
वाहिनी में ये चीजें होती हैः
१) पुस्तकालय – इसमें प्राथमिक विज्ञान, पर्यावरण, आरोग्य और अंधश्रध्दा निर्मुलन इन विषयों की किताबें और पोस्टर्स होते है l
२) दूरदर्शक दूरबीन (टेलिस्कोप)
३) विज्ञान और अंधश्रध्दा के विरोध के मत l इनकी ऑडियो और व्हिडियो सीडीज
४) ये साधन इस्तेमाल करने के लिए लगनेवाले सीडीप्लेअर, अँम्प्लिफायर,लाउडस्पीकर, मायक्रोफोन आदी
५) व्हिडियो के साधन – व्हिडियो सीडी प्लेअर, व्हिडियो प्रोजेक्टर, पर्दा आदी l
कार्यक्रमो की कार्यवाही
विज्ञान बोधवाहिनी के सफर कार्यक्रमों का आयोजन बहुत पहले किया जाता है। इस कार्यक्रम में जिन्हें रूचि है ऐसी स्कूलों ऐसे देहातों से संपर्क किया जाता है। नियोजन दिनपर अंनिस के कार्यकर्तागण उन जगह पर जाते हैं। प्रयोग, पोस्टर्स प्रदर्शन, टेलिस्कोप को हैंडल करने का अनुभव, फिल्म शो, चमत्कारों के प्रयोगों के साथ स्पष्टीकरण देनेवाले भाषण इन सबके जरिए अंनिस के कार्यकर्ता लोग अंधश्रध्दा के विरोधवाला संदेश लोगों तक पहुँचाकर वैज्ञानिक मनोवृत्ति को जगाते है|
विज्ञान शोध परिक्षा
बचपन में बच्चे बहुत जल्द सीखते हैं और इस उम्र में वे जो कुछ सीखते है वह उन्हें दीर्घ काल तक याद रहता हैI साधारण तौर पर बच्चे अपने अभिभावक, अपनी स्कूल और अपने आजूबाजू के समाज से बहुत कुछ सीखते हैI विज्ञान और तंत्रज्ञान की प्रगति के कारण जो लाभ हो रहे हैं इसके बावजूद भी हमारा समाज और बच्चों के मातापिता अब भी वैज्ञानिक अभिवृत्ति को स्वीकार करने के लिए तैयार नही हैI (पृ. 76) इसलिए अंनिस स्कूल में पढ़नेवाले बच्चेंके मन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रस्थापित करने का और उन्हें अंधश्रद्धाओं के प्रति सावधान करने की कोशिश में लगी हुई हैI
इसके लिए अंनिस ने अलगअलग गुट के लिए अलग अलग पाठ्यक्रम तैयार किया हैI पाठशाला के विद्यार्थियों को यह पाठ्यक्रम देकर अंनिस उनकी परीक्षाएँ लेते हैI इससे उन्हे छात्रों की सही स्थिति का पता चलता हैI इस विषय की कई पुस्तिकाएँ अंनिस के द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैंI अब छात्र इन पुस्तकों का अध्ययन करके परिक्षाएँ दें और सर्टिफिकेट हासिल करें ऐसी अपेक्षा होती हैI अभी ये पुस्तकें मराठी भाषा में है फिर भी जलद ही उनका अंग्रेजी में भाषांतर होगा और अन्य भाषा के लडकों को भी इस खास कार्यक्रम का फायदा मिलेगाI
अलावा इसके अंनिस विज्ञान शोध परिक्षा में रस लेनेवाले शिक्षकों के लिए भी तीन दिन का अद्ययन क्लास आयोजित करती हैI गांव गांव में जाकर अंनिस के कार्यकर्ता लोग ये क्लासेस चलाते हैंI अंधश्रद्धा निर्मूलन के कार्य का और उससे संबंधित कई विषयों का उन्हें अनुभव होता हैI इस अद्ययन के जरिये प्रशिक्षित अध्यापक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अंधश्रद्धा की पूरी शिक्षा प्रदान कर सकते हैं और विज्ञान शोध परिक्षा के लिए उन्हें तैयार करते हैंI
यह अनोखा उपक्रम अंनिस के द्वारा पिछले 20 सालों से चल रहा है और अब तक 20000 से ज्यादा अध्यापकों को प्रशिक्षण दिया गया हैI करीबन 150000 छात्राओं ने परिक्षा दींI यह उपक्रम हमेशा जारी रहता है और महाराष्ट्र के शहरी और ग्रामीण इलाकों में जनप्रिय बन गया हैI इस उपक्रम की अधिक जानकारी पाने के लिए निम्नलिखित पते पर संपर्क करें –
श्री. प्रशांत पोतदार
सहयोग हॉस्पिटल अनेक्स
सदर बाझार, सातारा 415001
या
श्री कुमार मंडपे
जिज्ञासा, विसावा नाका, सातारा 415001
फोन (02162) 230999